सार-सार को गहि रहै, थोथा देई उड़ाय ॥
नहीं शीतल है चंद्रमा, हिम नहीं शीतल होय ।
चाह मिटी, चिंता मिटी मनवा बेपरवाह ।
जिसको कुछ नहीं चाहिए वह शहनशाह ॥
पोथी पढ़-पढ़ जग मुआ, पंडित भया न कोय ।
साईं इतना दीजिये, जामे कुटुंब समाये ।
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