Tag: Dohe
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Santh Kabir Das Dohe – Part 5
ज्ञान रतन का जतन कर, माटी का संसार । हाय कबीरा फिर गया, फीका है संसार ॥ कुटिल वचन सबसे बुरा, जा से होत न चार । साधू वचन जल रूप है, बरसे अमृत धार ॥ जब गुण को गाहक मिले, तब गुण लाख बिकाई । जब गुण को गाहक…
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Santh Kabir Das Dohe – Part 4
साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय । सार-सार को गहि रहै, थोथा देई उड़ाय ॥ नहीं शीतल है चंद्रमा, हिम नहीं शीतल होय । कबीर शीतल संत जन, नाम सनेही होय ॥ चाह मिटी, चिंता मिटी मनवा बेपरवाह । जिसको कुछ नहीं चाहिए वह शहनशाह ॥ पोथी पढ़-पढ़ जग मुआ,…
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Santh Kabir Das Dohe – Part 3
प्रेम पियाला जो पिए, सिस दक्षिणा देय । लोभी शीश न दे सके, नाम प्रेम का लेय॥ तिनका कबहुँ ना निन्दिये, जो पाँवन तर होय । कबहुँ उड़ी आँखिन पड़े, तो पीर घनेरी होय ॥ कबीरा सोई पीर है, जो जाने पर पीर । जो पर पीर न जानही, सो…
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Santh Kabir Das Dohe – Part 2
जिन घर साधू न पुजिये, घर की सेवा नाही । ते घर मरघट जानिए, भुत बसे तिन माही ॥ अति का भला न बोलना, अति की भली न चुप । अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप ॥ चिंता ऐसी डाकिनी, काटि करेजा खाए । वैद्य…
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Santh Kabir Das Dohe – Part 1
काल करे सो आज कर, आज करे सो अब । पल में परलय होएगी, बहुरि करेगा कब ॥ ते दिन गए अकारथ ही, संगत भई न संग । प्रेम बिना पशु जीवन, भक्ति बिना भगवंत ॥ तीरथ गए से एक फल, संत मिले फल चार । सतगुरु मिले अनेक फल, कहे कबीर विचार ॥…