Santh Kabir Das Dohe – Part 2

जिन घर साधू न पुजिये, घर की सेवा नाही ।

ते घर मरघट जानिए, भुत बसे तिन माही ॥
 

 
 
अति का भला न बोलना, अति की भली न चुप ।

अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप ॥
 

 
 
चिंता ऐसी डाकिनी, काटि करेजा खाए ।

वैद्य बिचारा क्या करे, कहां तक दवा खवाय ॥
 

 

नहाये धोये क्या हुआ, जो मन मैल न जाए ।

मीन सदा जल में रहे, धोये बास न जाए ॥
 

 
 
पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय ।

ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय ॥