Santh Kabir Das Dohe – Part 3

प्रेम पियाला जो पिए, सिस दक्षिणा देय ।

लोभी शीश न दे सके, नाम प्रेम का लेय॥
 

 
 
तिनका कबहुँ ना निन्दिये, जो पाँवन तर होय ।

कबहुँ उड़ी आँखिन पड़े, तो पीर घनेरी होय ॥
 

 

कबीरा सोई पीर है, जो जाने पर पीर ।

जो पर पीर न जानही, सो का पीर में पीर ॥
 

 
 
निंदक नियरे राखिए ऑंगन कुटी छवाय ।

बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय॥
 

 

कबीर सुता क्या करे, जागी न जपे मुरारी । 

एक दिन तू भी सोवेगा, लम्बे पांव पसारी ॥